महाकुम्भ मेला 2025 भारत में मनाया जाने वाला एक बहुत ही सुन्दर पर्व है, इस मेले में देश- विदेश (पूरी दुनिया ) से लोग (श्रद्धालु ) शामिल होते है और हमारे देश के पवित्र नदी में शाही स्नान करते है। कुम्भ मेले की शुरुआत साल के शुरू महीने जनवरी में किया जाता है, और यह मेला 48 दिनों तक लगातार चलता रहता है। यह पर्व सनातन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र पर्वों में से एक है। आज हम इस पोस्ट में कुम्भ मेले से सम्बंधित जो भी मुख्य बातें, इतिहास है उस पर चर्चा करेंगे।

(Kumbh Mela कब शुरू हुआ, किसने शुरुआत की, मेले के कितने प्रकार, तथा इस महाकुम्भ मेले का महत्व )
कुम्भ मेले का शुरुआत कब से हुआ और किसने किया
कुम्भ मेला का संधि विच्छेद करें तो कुम्भ + मेला होता है जिसमे कुम्भ का अर्थ अमर पात्र (अमृत की कलश ) होती है। और वही आपको पता होगा की मेला का मतलब (भीड़, मिलन, इकठे लोग ) होना होता है।
हमारे इतिहास में कहीं ऐसा कोई जिक्र नहीं है जिससे ये स्पष्ट और सटीक पता चले की कुम्भ मेला की शुरुआत कब और किसने किया था। लेकिन हाँ, पौराणिक कथाओं के अनुसार ये सुनने को मिलते आ रहा है की इस महपर्व का शुभारम्भ शंकराचार्य ने किया था। कुछ और भी रोचक तथ्य है जो आगे समझते है।
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार ये भी माना जाता है की इस पर्व की शुरुआत समुद्र मंथन के समय ही हो गया था और उसी वक़्त से कुम्भ मेला अभी तक लगातार एक महापर्व के रूप में मनाया जा रहा है।
समुद्र मंथन से जुडी कुछ बातें:
समुद्र मंथन की कहानी आपको सनातन धर्म के पौराणिक ग्रंथो में देखने को मिलेगी। समुद्र मंथन होने के कारण महर्षि दुर्भाषा का वो श्राप जो उन्होंने भगवान इन्द्र को दिया था जिसके कारण स्वर्ग से धन- वैभव (लक्ष्मी ) चली गयी थी। इसलिए भगवान विष्णु के कहने पर देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के पश्चात जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश (कुम्भ ) लेकर प्रकट हुए तो इन्द्र के कहने पर उनके पुत्र ने अमृत से भरे कुम्भ को लेकर भागने लगे। इसे देख दैत्य भी उनके पीछे अमृत पाने की लालसा में उनका पीछा करने लगे। इस दौरान देवता और दैत्यों में 12 दिन तक लगातार बहुत ही खतरनाक युद्ध चला। देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत कलश की खिंचा तानी में कुछ अमृत की बूंदे इन चार जगहों (प्रयागराज, नासिक, उज्जैन, हरद्वार ) पर गिर गयी थी।
और आपको ये भी बता दें की देवताओं और असुरों के बीच युद्ध का 1 दिन का अवधि पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होता था। इसी कारणवश हर 12 साल पर महाकुम्भ का महापर्व मेले के रूप में मनाया जाता है। जो इस बार mahakumbh mela 2025 मनाया जाएगा
सबसे बड़ा कुम्भ मेला कहाँ लगता है?
सबसे बड़ा महाकुम्भ मेला हमारे भारतवर्ष में ही मनाया जाता है। उत्तरप्रदेश के प्रयागराज शहर में गंगा यमुना सरस्वती के संगम तट पर आयोजित किया जाता है।
कुम्भ मेला कितने प्रकार के होते है? आइये समझे!
पौराणिक कथाओं के अनुसार हमारे भारतवर्ष में यह पांच प्रकार का कुम्भ मेला पर्व को मनाया जाता है।
महाकुम्भ मेला: यह मेला सिर्फ और सिर्फ यूपी के प्रयागराज शहर में मनाया जाता है। जब 12 पूर्ण कुम्भ मेला पूरा हो जाता है तब इसके बाद 1 बार महाकुम्भ का मेला लगता है। 144 साल के बाद इस बार भारत की पावन धरती पर 13 जनवरी 2025 से लेकर 26 फरबरी 2025 तक महाकुम्भ मेला 2025 का आयोजन किया गया है।
पूर्ण कुम्भ मेला: यह मेला हर 12 साल में एक बार मनाया जाता है। गृह- नक्षत्रों के अनुसार यह मेला इन चार जगहों (प्रयागराज, नासिक, उज्जैन, हरिद्वार) पर से किसी एक जगह पर मनाया जाता है।
अर्ध कुम्भ मेला: नाम से ही पहचान मिल रही है, आधा कुम्भ मेला जो केवल इन दोनों स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार) पर हर 6 साल के अंतराल पर लगता है।
कुम्भ मेला: यह मेला हर तीन साल में बारी बारी से चारो स्थानों पर आयोजित होता है।
माघ कुम्भ मेला: यह मेला हर वर्ष सिर्फ और सिर्फ प्रयागराज में ही मनाया जाता है।
कुम्भ मेले में ग्रहों के प्रति महत्वकांक्षा
हमारे सौर मंडल में कुल नौ ग्रह हैं और सबकी अपनी अलग अलग भूमिका है। इन नौ ग्रहों में से चार ग्रह (सूर्य, चंद्र, गुरु, शनि) को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
अतः इन चार ग्रहों का संयोग जब एक राशि में दिखाई देता है तब यह महाकुम्भ का तयोहार मनाया जाता है।
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